दिल्ली विश्वविद्यालय, वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज, सफदरजंग अस्पताल, दिल्ली और स्माइल इनक्यूबेटर, स्वीडन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नवीन अध्ययन में गहन देखभाल इकाइयों (आईसीयू) में भर्ती रोगियों में दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के पाए जाने के खतरनाक मामले सामने आए हैं। जर्नल ऑफ़ एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस एंड इंफेक्शन कंट्रोल में प्रकाशित इस अध्ययन से अस्पतालों में आईसीयू की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है, जहां ज्यादातर मरीज़ पहले से ही गंभीर स्थिति में होते हैं।
आईसीयू में भर्ती रोगियों की प्रतिरक्षा अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं के कारण पहले से ही कमज़ोर होती है, ऐसी स्थिति में अन्य बैक्टीरियल संक्रमणों के रोगियों के स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण रोगियों की स्थिति और गंभीर हो जाती है। नतीजन, मरीज़ों को अक्सर अस्पताल में लंबे समय तक रहने के साथ-साथ अधिक मात्रा में एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करना पड़ता है। यह स्थिति न केवल उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि अस्पताल के खर्च के रूप में उनकी जेबों पर भी भरी पड़ती है। अतः इन घातक जीवाणुओं की पहचान करना अत्यंत आवश्यक है जिससे इनसे होने वाले संक्रमण को रोकने में मदद मिल सके।
इस अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने आईसीयू में भर्ती रोगियों में बैक्टीरिया एस्चेरिचिया कोलाई (ई कोलाई) के प्रसार का अध्ययन किया। हालांकि ई कोलाई के ज़्यादातर उपभेद हानिरहित होते हैं, पर कुछ खराब उपभेद हैं जो दस्त जैसी जटिलताओं को पैदा करते हैं।
रोगजनक ई कोलाई से होने वाले खतरे के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है, "यह बैक्टीरिया कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है तथा १७-३७ प्रतिशत तक समुदाय और अस्पताल-अधिग्रहित नैदानिक रूप से महत्वपूर्ण रक्तप्रवाह के संक्रमणों का भी कारण बनता है जिससे कई बार मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है।"
वैज्ञानिकों ने आईसीयू में भर्ती पूति (पूति या सेप्सिस- एक जानलेवा संक्रमण) से ग्रसित मरीजों के खून से ई कोलाई बैक्टीरिया को निकाला और उसकी जांच की। उन्होंने उन मरीज़ों के मल से भी इन जीवाणुओं को निकाला जिन्हें सेप्सिस नहीं था। आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने ई कोलाई के विभिन्न उपभेदों की पहचान की और विभिन्न एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति उनकी क्या प्रतिक्रिया थी इस बात का अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने इसका भी अध्ययन किया कि सेफलोस्पोरिन एंटीबायोटिक, जो कि जीवाणु संक्रमण की एक विस्तृत श्रृंखला के खिलाफ काम करती है, का ई कोलाई पर क्या असर होगा।
वैज्ञानिकों ने पाया कि रोगियों में पाए जाने वाले अधिकांश बैक्टीरिया ई कोलाई के दो उपभेदों से संबंधित थे जो मरीज़ों में दस्त का कारण बनते हैं। जब इन बैक्टीरिया का एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज किया गया, तो परिणाम खतरनाक थे। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि एंटीबायोटिक संवेदनशीलता परिणाम से पता चला है कि ७०% से अधिक मल से प्राप्त ई कोलाई आइसोलेट्स और ९०% से अधिक रक्त से प्राप्त ई कोलाई आइसोलेट्स सभी सेफलोस्पोरिन के परीक्षण के लिए प्रतिरोधी थे। वैज्ञानिकों का तो यह भी कहना था कि ये सभी जीवाणु उपभेद ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाओं के अन्य वर्गों के लिए भी प्रतिरोधी थे।
सवाल यह है कि ई कोलाई दवाओं के लिए प्रतिरोधी कैसे हो जाता है? क्योंकि इन बैक्टीरिया में विस्तारित-स्पेक्ट्रम β-लैक्टामेज, या ईएसबीएल नामक एंजाइम का एक समूह पाया जाता है, जो पेनिसिलिन और सेफलोस्पोरिन जैसे एंटीबायोटिक दवाओं को तोड़ कर, उन्हें अप्रभावी कर देते हैं। अध्ययन में पाया गया कि ६८% रक्त और ४४% मल ई कोलाई उपभेदों में इन एंजाइमों का उत्पादन होता है । अध्ययन में वैज्ञानिकों ने आईसीयू के रोगियों में ई कोलाई का एक बहुत खतरनाक उपभेद ST131 पाया जिसकी मात्रा बहुत अधिक थी और ये बहुत ही ज़्यादा दवा प्रतिरोधी होता है।
अध्ययन के निष्कर्षों में दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए उसके गंभीर खतरे को उजागर किया गया है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह बैक्टीरिया अस्पताल के सुरक्षित और सूक्ष्मजीव रहित वातावरण में भी पाया गया ।
“आमतौर पर प्रयोग में लाए जाने वाले सेफलोस्पोरिन एंटीबायोटिक के खिलाफ ई कोलाई में बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बात नहीं है क्योंकि ये रोगियों के लिए इष्टतम दवा चिकित्सा के निर्णय में बहुत अधिक बाधा डाल सकता है। इस स्थिति में प्रभावी स्वच्छता उपायों के साथ एंटीबायोटिक दवाओं की निरंतर निगरानी और तर्कसंगत उपयोग की तत्काल आवश्यकता है ”, लेखकों ने निष्कर्ष निकाला।