रिफाइनरी से प्राप्त उपचारित अपशिष्ट जल जब बालू से होकर बहता है तो इस पर प्रदूषक-भक्षी जीवाणुओं की एक परत निर्मित कर देता है, जो पानी से हानिकारक यौगिकों को दूर करती है।

औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों के प्रशोधन के लिए नैनोकार्बन फ्लोरेट्स का उपयोग

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मुंबई
22 जून 2020
औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों के प्रशोधन के लिए नैनोकार्बन फ्लोरेट्स का उपयोग

शोधकर्ताओं ने पानी में उपस्थित दूषित भारी धातु पदार्थों को एकल चरण प्रक्रिया से हटाने के लिए एक नए पदार्थ की रचना की है।

चिकित्सा से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स और जैव-रासायनिक पदार्थो में उपयोगों तक अनेक क्षेत्रों में "नैनो पदार्थ" आज क्रांति ला रहे हैं। वैज्ञानिक कार्बन के विभिन्न नैनो रूप, मसलन नैनोट्यूब, नैनोकॉन, नैनोहॉर्न्स, द्वि-आयामी ग्राफीन और कार्बन ओनियन आदि का अध्ययन कर रहे हैं। अब, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के शोधकर्ताओं ने इस सूची में एक नया प्रकार जोड़ा है, जिसे नैनो कार्बन फ्लोरेट्स नाम दिया गया है। ये नैनो-आकार के फ्लोरेट्स गेंदे के फूल जैसे दिखते हैं; ये औद्योगिक अपशिष्टों से हानिकारक भारी धातु प्रदूषकों को हटाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद कर सकते हैं।

एसीएस एप्लाइड नैनो मटेरियल्स नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में, प्राध्यापक सी सुब्रमण्यम और रसायन विभाग की उनकी टीम ने नैनोकार्बन फ्लोरेट्स की रचना की है। ये पदार्थ आर्सेनिक, क्रोमियम, कैडमियम और पारे जैसे प्रदूषक तत्वों को 90% तक हटा सकते हैं। ये फ्लोरेट्स विभिन्न अम्लता या क्षारीयता वाले दूषित पानी पर भी अपना काम करने में सक्षम हैं। ये अवशोषण द्वारा अशुद्धियों को दूर करते हैं। साफ़ पानी इन पदार्थों के ऊपर से निकल जाता है और अशुद्धियाँ इन फ़्लोरेट्स की सतह पर चिपक जाती हैं। और हल्के एसिड से धोने पर ये फ़्लोरेट्स दोबारा नए हो जाते हैं, और अपना कार्य करने लगते हैं। नैनोकार्बन फ़्लोरेट्स रासायनिक और यंत्रवत् दृष्टि से सुदृढ़ होते हैं और एक तापमान की एक बड़े विस्तार में स्थिर रहने की क्षमता रखते हैं। इसलिए, ये पानी की अशुद्धियों को हटाने लिए एक सुविधाजनक और स्थायी समाधान हैं।

रासायनिक उद्योगों, चमड़ा उद्योगों या क्रोम प्लांटिंग संयंत्रों के प्रवाह में आर्सेनिक, क्रोमियम, पारे और कैडमियम जैसे खतरनाक भारी धातुओं के आयन होते हैं। ये पदार्थ कैंसर और आनुवंशिक उत्परिवर्तन का कारण बन सकते हैं। ये समय के साथ हमारे परिवेश में जमा होते जाते हैं, और पर्यावरण को लम्बे समय तक नुकसान पहुंचा सकते हैं।

अवशोषण आधारित इन फ़िलटरो को उपयोग करना और इनकी संख्या का विस्तार करना आसान है, साथ ही साथ इन फ़िलटरों का पुन: उपयोग किया जा सकता है। ये कई पारंपरिक तरीकों जैसे रासायनिक प्रक्रिया, आयन एक्सचेंज, इलेक्ट्रोकेमिकल पृथक्करण या झिल्ली पृथक्करण आदि की तुलना में सबसे लाभप्रद और किफायती तरीका है। झिल्ली-आधारित पृथक्करण का उपयोग करने वाले तरीके अशुद्धियों से पानी को अलग करते हैं जबकि अवशोषण द्वारा पानी से अशुद्धियों को निकाला जाता है। इसलिए, यह अधिक ऊर्जा-कुशल भी है और इसमें पानी भी कम मात्रा में व्यर्थ होता हैं।

अवशोषण प्रक्रिया के आधार पर काम करने वाले किसी आदर्श फ़िल्टर का पृष्ठीय क्षेत्रफल अत्याधिक होना चाहिए ताकि अधिक से अधिक अशुद्धियाँ उस पर चिपक सकें। प्राध्यापक सुब्रमण्यम बताते हैं, "सिर्फ पृष्ठीय क्षेत्रफल का अधिक होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसका प्राप्य होना भी प्रमुख मापदंड है।"फिल्टर पदार्थ छिद्रपूर्ण होना चाहिए, और छिद्र का आकार अशुद्धता के पार होने के लिए उपयुक्त होना चाहिए। साथ ही इन छिद्रों का घनत्व भी पर्याप्त होना चाहिए। इसे पानी में घुली हुई अशुद्धियों को पारित होने देना चाहिए, और साथ ही इसे रासायनिक और यंत्रवत् दृष्टि से सुदृढ़ भी होना चाहिए।

अब तक खोजे गए अधिशोषक इन सभी मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। उदाहरण के लिए, सिंथेटिक यौगिक कुशलतापूर्वक और चुनिंदा रूप से विशिष्ट अशुद्धियों को दूर कर सकते हैं, लेकिन ये जैवसंयोजनीय नहीं हैं, इसलिए इनको समाप्त करना मुश्किल हैं। दूसरी ओर, बायोमास-आधारित पदार्थ भी अक्षम हैं क्योंकि उनका पुन: उपयोग नहीं किया जा सकता है। धातु-कार्बनिक ढांचे हालांकि कुशल होते हैं लेकिन ये अस्थिर हैं। कार्बन-आधारित नैनोमटेरियल्स दूसरों की तुलना में बेहतर हैं, लेकिन उनमें से कई हाइड्रोफोबिक हैं, इसलिए पानी को इनसे परस्पर क्रिया करने में समय लगता है। नैनोट्यूब और नैनोहॉर्न जैसे कार्बन-आधारित नैनोमटेरियल्स के प्रयोग के साथ अशुद्धियों का अवशोषण धीमा होता हैं क्योंकि ये एक दूसरे के साथ गाँठ बना लेते हैं, जिससे इनका सतह क्षेत्र अपेक्षाकृत कम हो जाता हैं। इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पानी को आकर्षित करने वाले एक हाइड्रोफिलिक नैनोकार्बन पदार्थ की रचना कर इन कमियों को दूर करने की कोशिश की।

वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सिलिका-आधारित टेम्पलेट पर कार्बन के रासायनिक वाष्प निक्षेपण का उपयोग करते हुए नैनोकार्बन फ़्लोरेट्स का निर्माण किया है। फ़्लोरेट्स परतदार, पंख जैसी ग्रेफाइटिक शीट से बने होते हैं,जो केंद्र में एक ठोस मध्यभाग में जुड़े हुए होते हैं, और एक गेंदे के फूल जैसे दिखते हैं। इन फ्लोरेट्स में अवशोषण के लिए बड़े सुलभ क्षेत्र होते हैं जो की अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय पानी में भी हाइड्रोफिलिक और रासायनिक दृष्टि से सुदृढ़ होते हैं। ये विभिन्न अशुद्धियों को भी फ़िल्टर कर सकते हैं, जिस कारण विभिन्न दूषित पदार्थों के लिए अलग अलग फिल्टर के उपयोग करने की आवश्यकता को समाप्त किया जा सकता हैं।

शोधकर्ताओं ने आर्सेनिक, क्रोमियम, कैडमियम और पारे से दूषित जल को पारित करके फ्लोरेट्स की दक्षता का परीक्षण किया। हालांकि इन फ्लोरेट्स का झुकाव आर्सेनिक और क्रोमियम की ओर अधिक था, लेकिन इनके प्रयोग से सभी प्रकार की अशुद्धियाँ 80-90% तक हट गयी। शोधकर्ताओं ने देखा कि कई प्रदूषकों के बजाय एकल प्रदूषक के होने पर अवशोषण की दक्षता अधिक थी। साथ ही ये भी देखा गया कि  इन फ्लोरेट्स की फ़िल्टरिंग क्षमता बार-बार उपयोग के बाद थोड़ी कम हो गई।

शोधकर्ताओं ने कहा, "जिओलाइट्स, सक्रियकृत कार्बन, नैनोट्यूब, ग्राफीन, पॉलिमर आदि जैसे अन्य रासायनिक रूप से अनुरूपित अधिशोषक किसी एक धातु आयन की तुलना में अधिक प्रभावी होते हैं। यद्यपि अन्य आयनों के लिए इनकी दक्षता और क्षमता दोनों काफी हद तक कम हो जाती हैं."

नैनोकण फ़्लोरेट्स के रासायनिक गुण अवशोषण प्रक्रिया में मदद करते हैं और इनकी संरचना अवशोषण प्रक्रिया के उच्च परिमाण में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।

शोधकर्ताओं ने अपने इस डिज़ाइन के लिए पेटेंट का आवेदन किया है और वे अब इसके व्यवसायीकरण के बारे में सोच रहे हैं।

"औद्योगिक पैमाने पर इन नैनोकार्बन फ़्लोरेट्स फिल्टर के व्यवसायीकरण के लिए उद्योग जगत के साथ साझेदारी में अधिक काम करने की जरूरत है" प्राध्यापक सुब्रमण्यम अपनी बात ख़त्म करते हुए कहते हैं।