
भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल हाट है एवं प्रतिवर्ष 25 लाख मीट्रिक टन चक्कों (टायर) का उत्पादन करता है। यह अपशिष्ट चक्कों की मात्रा में वृद्धि को भी इंगित करता है, जो नगरीय ठोस अपशिष्ट का 1% भाग है, अर्थात 20 लाख मीट्रिक टन चक्के अपशिष्ट के रूप में प्रतिवर्ष त्याग दिए जाते हैं। साथ ही यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया एवं संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से, जहाँ चक्कों का पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) प्रतिबंधित है, भारत में 8 मीट्रिक टन अपशिष्ट चक्के प्रतिवर्ष आयात भी किये जाते हैं। 800 पंजीकृत पुनर्चक्रण कर्ताओं अर्थात विश्व भर के 70% भाग के साथ, भारत विश्व में चक्कों का सबसे बड़ा पुनर्चक्रण-कर्ता है। यद्यपि सरकार की कठोर पुनर्चक्रण नियमावली के उपरांत भी कई पुनर्चक्रण-कर्ता अवैध रूप से चक्के जला देते हैं या उन्हें अपशिष्ट भराव क्षेत्र (लैंडफिल) में फेंक देते हैं। लैंडफिल में जमा हुए इन त्याजित चक्कों के ढेर, जो जलने पर विषैले धुएं का उत्सर्जन करते हैं, एक दीर्घकालिक पर्यावरणीय संकट उत्पन्न करते हैं।
अपशिष्ट रबर की समस्या के समाधान हेतु एक युक्ति है कंक्रीट में रबर को मिलाकर इसे सुदृढ़ता बढ़ाने वाले कारक (रेनफोर्समेंट एजेंट) के रूप में पुनः उपयोग करना। विश्व भर के शोधकर्ता कंक्रीट में स्थित रेत एवं बजरी जैसे प्राकृतिक पदार्थों (नैचुरल एग्रीगेट) के स्थान पर चूर्णित अपशिष्ट रबर (25-30 मिमी आकार; इसे WasRub नाम दिया गया है) का उपयोग करने के मार्ग खोजने में लगे हैं, जिससे रबक्रिट नामक सामग्री निर्मित होती है। यह विधि समस्या कारक अपशिष्ट के लिए उपयोग खोजती है, साथ ही कंक्रीट में उपयोग किए जाने वाले प्राकृतिक पत्थर एवं रेत के खनन की आवश्यकता को कम करती है। यद्यपि यथोचित मिश्रण प्राप्त करने हेतु इस बात की सटीक जानकारी आवश्यक है कि सामग्री परस्पर क्रिया कैसे करती है, विशेषकर सूक्ष्म स्तर पर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई के शोधकर्ताओं ने सिविल अभियांत्रिकी विभाग के प्रा. डी. एन. सिंग के मार्गदर्शन में अपने नवीन अध्ययन में यही कार्य किया है।
पारंपरिक कंक्रीट, सीमेंट एवं रेत व गिट्टी जैसे समुच्चय (एग्रीगेट) का मिश्रण होता है। कंक्रीट की दृढ़ता सीमेंट के लेप एवं इस समुच्चय के मध्य स्थित बंधों (बॉन्डिंग) पर बहुत अधिक निर्भर करती है। सूक्ष्म स्तर पर बंधों का यह महत्वपूर्ण क्षेत्र इंटरफेशियल ट्रांजिशन जोन या ITZ कहलाता है। यह एक सूक्ष्म क्षेत्र (माइक्रोस्कोपिक रीजन) है, जो मानव केश से भी कृष है एवं यहाँ पर गुणधर्म मुख्य सीमेंट या समुच्चय से किंचित भिन्न होते हैं। रबक्रिट में प्राकृतिक पत्थर एवं रेत की कुछ मात्रा को रबर के टुकड़ों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है, जो पत्थर से बहुत भिन्न व्यवहार करते हैं। रबर के कारण रबक्रिट नम्य, कम घना एवं विशेषकर पानी को प्रतिकर्षित करने वाला (हाइड्रोफोबिक) होता है।
आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं द्वारा रबक्रिट में इंटरफेशियल ट्रांजिशन जोन (ITZ) को समझने के लिए एक विस्तृत परीक्षण प्रारम्भ किया गया तथा रबर कणों एवं निकटवर्ती सीमेंट के मिलने से सूक्ष्म स्तर पर होने वाली अंत:क्रिया पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्हें आशंका थी कि रबर की जल को प्रतिकर्षित करने वाली प्रकृति एवं भौतिक उपस्थिति मात्र, इस क्षेत्र को पारंपरिक कंक्रीट की तुलना में विशिष्ट रूप से परिवर्तित कर देगी। रबर की हाइड्रोफोबिक प्रकृति का अभिप्राय है कि सीमेंट लेप कभी भी रबर कणों को स्पर्श नहीं करता है। वास्तव में रबर के चारों ओर एक सुरक्षा भित्ति (wall) निर्मित हो जाती है।
आईआईटी मुंबई के पीएचडी शोध छात्र एवं इस नवीन अध्ययन के प्रमुख लेखक पृथ्वेंद्र सिंह कहते हैं, “भित्ति-प्रभाव के कारण रबर कणों के निकट सीमेंट कणों का एक समान वितरण बाधित हो जाता है, जिससे रबर कणों के चारों ओर एक छिद्रित क्षेत्र निर्मित जाता है।”
रबर अपनी सतह पर स्थित जल को भी दूर धकेलता है, जो कि सीमेंट को हाइड्रेट करने, प्रतिक्रिया करने एवं कठोरीकरण के लिए आवश्यक है। रबर की सुरक्षा भित्ति पर एकत्र जल, अभिक्रिया की तीव्रता को कम (डाइल्यूट) कर देता है, जिसे 'डाइल्यूशन प्रभाव' कहते हैं। आईआईटी मुंबई के शोध दल का अनुमान है कि वॉल एवं डाइल्यूशन इफेक्ट (WDE) एक साथ, रबर कणों के निकट अधिक छिद्रपूर्ण एवं संभावित रूप से दुर्बल ITZ निर्मित करते हैं, जिससे रबक्रिट प्राकृतिक कंक्रीट की तुलना में नरम हो जाता है। और यही वह गुण है जो रबक्रिट के लिए चुनौती एवं अवसर दोनों उत्पन्न करता है।
शोधकर्ताओं ने रबक्रिट प्रतिरूपों (सैंपल) का परीक्षण करने हेतु उपकरणों के समूह का उपयोग किया, ताकि उक्त प्रभाव का अध्ययन किया जा सके। उन्होंने रबक्रिट प्रतिरूप के तीन विशिष्ट भागों से चूर्ण प्रतिरूप प्राप्त किये - रबर के निकट (अड्जेस्सेंट) में, प्राकृतिक समुच्चय के निकट एवं मुख्य सीमेंट के घनीभूत लेप से। उन्होंने एक्स-रे डिफ्रेक्शन (XRD) तथा फोरिअर ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (FTIR) जैसी प्रतिबिम्बन (इमेजिंग) तकनीकों का उपयोग करके सीमेंट हाइड्रेशन प्रक्रिया के समय निर्मित विशिष्ट खनिजों एवं रासायनिक बंधों की पहचान की। अपेक्षानुसार उन्होंने कंक्रीट हाइड्रेशन उत्पाद जैसे कैल्शियम सिलिकेट हाइड्रेट (C-S-H), जो कंक्रीट में प्रमुख गोंद है, तथा कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड (C-H) की भी खोज की। यद्यपि अन्य खनिजों का वितरण एवं उपस्थिति जैसे कि एनोर्थाइट, रबर के निकटस्थ प्रतिरूपों में भिन्न थी।
शोधकर्ताओं ने तापमान परिवर्तन के साथ पदार्थ की मात्रा में होने वाले परिवर्तन को मापने वाले थर्मो-ग्रेविमेट्रिक एनालिसिस (TGA) का उपयोग किया, ताकि संरचना के अन्दर फंसे हुए जल की मात्रा ज्ञात हो सके। तदुपरांत उन्होंने स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (SEM) का उपयोग किया, जिसे एनर्जी डिस्पर्सिव स्पेक्ट्रोस्कोपी (EDS) के साथ जोड़ा गया था। इससे प्राप्त ITZ के दृश्यात्मक एवं संरचनात्मक मानचित्र के माध्यम से वे इसकी सूक्ष्म संरचना (माइक्रो-स्ट्रक्चर) देख सके, जिसमें छोटे छिद्र, अभिक्रिया रहित सीमेंट कण एवं हाइड्रेशन उत्पाद सम्मिलित थे।
शोधदल ने नैनो इंडेंटेशन तकनीक का उपयोग करके रबक्रिट की कठोरता एवं दृढ़ता को भी मापा। इसके अंतर्गत एक हीरा जड़ित नुकीली सुई के द्वारा ITZ सामग्री की सतह के विभिन्न बिंदुओं पर विशिष्ट मान का बल आरोपित करते हुए इसे चुभाया गया तथा इस बल एवं सम्बंधित विस्थापन को मापा गया। इसके उपरांत एक्स-रे माइक्रो-कंप्यूटेड टोमोग्राफी (micro-CT) का उपयोग करते हुए उन्होंने कंक्रीट की आंतरिक संरचना की हाई-रेसोल्यूशन वाली त्रिविमीय एक्स-रे छवियाँ प्राप्त की। इस तकनीक के उपयोग से वे ITZ की मोटाई माप सके, जो 35 से 120 माइक्रोमीटर तक थी। यह पारंपरिक कंक्रीट में देखी जाने वाली मोटाई से अधिक थी। यह विधि एक चयनित क्षेत्र के इस भाग में छिद्रता (पोरोसिटी) का मापन भी कर सकी, जो लगभग 5.8% थी। महत्वपूर्ण रूप से त्रिविमीय दृश्यों ने इंगित किया कि ये छिद्र एक सीमा तक असंबद्ध थे।

उनके परीक्षणों ने पुष्टि की कि वॉल एवं डाइल्यूशन इफेक्ट रबक्रिट में एक विशिष्ट ITZ बनाता है। यह क्षेत्र प्राकृतिक समुच्चयों (एग्रीगेट) के बंधों की तुलना में बड़ा, अधिक छिद्रित तथा सूक्ष्म स्तर पर यांत्रिक रूप से दुर्बल है। इससे स्पष्ट होता है कि रबक्रिट की संपीडन शक्ति (कंप्रेसिव स्ट्रेंथ) पारंपरिक कंक्रीट की तुलना में कम क्यों होती है।
यद्यपि रबक्रिट की इस दुर्बलता में छिपा हुआ एक आश्चर्यजनक लाभ है इसकी बढ़ी हुई छिद्रता, विशेषकर एक सीमा तक असंबद्ध छिद्रों का नेटवर्क। यह खारे जल (साल्ट वाटर) जैसे आक्रामक संक्षारक पदार्थों के लिए अधिक जटिल एवं घुमावदार मार्ग के समान कार्य करता है।
पृथ्वेंद्र कहते हैं, “इस खोज का सबसे आश्चर्यजनक पक्ष यह है कि एक ओर तो रबर सीमेंट के साथ बंधन को दुर्बल करता है, वहीं दूसरी ओर यह ITZ में एक असंबद्ध छिद्र नेटवर्क बनाता है, जो क्लोराइड, नमी आदि के द्रव्यमान के प्रवाह (मास मूवमेंट) को मंद कर देता है। इसका यह गुण उन स्थानों के लिए लाभदायक है जहां संरचना का रासायनिक प्रतिरोध संरचना की शक्ति से अधिक महत्वपूर्ण है, जैसे कि चरम जलवायु एवं समुद्री वातावरण की स्थितियों में।”
इसके अतिरिक्त रबर कणों में अंतर्निहित नम्यता एवं ITZ की किंचित दुर्बलता, रबक्रिट के ज्ञात लाभों में योगदान करते हैं, जैसे: यह कम भंगुर (ब्रिटिल) है, आघातों से अधिक ऊर्जा को अवशोषित कर सकता है तथा फटीग क्रैकिंग परीक्षण के लिए उत्तम प्रतिरोध धारण करता है।
पृथ्वेंद्र के अनुसार, “रबक्रिट की शक्ति इसकी आर्द्रता (डैम्पिंग) एवं नम्यता के साथ-साथ पर्यावरणीय दबावों (तापीय एवं रासायनिक) के विरुद्ध इसके प्रतिरोध में भी है। तापमान के उतार-चढ़ाव को अनावृत सड़क बाधाएं (बैरिअर) एवं फुटपाथ, तटीय एवं समुद्री संरचनाएं जहां क्लोराइड का प्रवेश चिंतनीय है तथा शॉक-अवशोषक प्रणालियाँ जैसे रेलवे बफर या भूकंप-प्रवण अवसंरचनाएं तात्कालिक रूप से लाभकारी अनुप्रयोग हो सकते हैं।”
कई परिष्कृत तकनीकों को मिला कर एक विस्तृत चित्रण प्रस्तुत करता यह अध्ययन रबक्रिट एवं इसके अद्वितीय गुणों के सम्बन्ध में हमारा ज्ञानवर्धन करता है। यद्यपि रबक्रिट पर किये गए पूर्व के कार्यों में इसकी कम शक्ति एवं और उच्च नम्यता को आँका गया है, यह नवीन शोध, गुणधर्मों की अधिक सटीक एवं सूक्ष्मदर्शित (माइक्रोस्कोपिक) व्याख्या प्रदान करता है। अध्ययन रबर के कारण निर्मित असंबद्ध छिद्रों से होने वाले आश्चर्यजनक लाभ की भी पहचान करता है।
अध्ययन दल अब वास्तविक विश्व के अनुप्रयोगों में रबक्रिट का परीक्षण करना चाहता है।
शोध की सीमाओं एवं भविष्य के सम्बन्ध में पृथ्वेंद्र का कहना है, "अब तक हमने प्रत्यक्ष पर्यावरणीय चक्रों के संपर्क में आने की तुलना में सूक्ष्म संरचनात्मक व्यवहार पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है। वास्तविक विश्व में दीर्घकालिक परीक्षण करने हेतु रबक्रिट को समुद्री क्षेत्रों, नमक प्रवाह कक्षों एवं हिम-संद्रवण (फ्रीज-थॉ) वातावरण में दीर्घकाल तक रखना होगा।"
यह अध्ययन इस बात पर बल देता है कि रबक्रिट केवल पुराने चक्कों का पुनर्चक्रण करने की पद्धति नहीं है। यह अधिक टिकाऊ निर्माण सामग्री निर्मित करने की एक कुशल पद्धति है जो चरम परिस्थितियों की चुनौतियों में विशिष्ट रूप से उपयुक्त है, एवं पर्यावरणीय प्रतिकूलता के विरुद्ध हरित एवं कठोर संरचनाएं निर्मित करने में सहायक है।