लगभग 11,000 साल पहले, मध्यपूर्व के ‘फर्टाइल क्रिसेंट’ इलाके में किसानों को गेहूँ उगाते हुए एक अनोखी चुनौती से जूझना पड़ता था। पकने के बाद इस जंगली प्रजाति के खपली गेहूँ के दाने कटाई से पहले जमीन पर गिरकर बिखर जाते थे। अगले कुछ हज़ारों वर्षों तक किसानों ने सावधानीपूर्वक चुनकर कुछ पौधों की नस्ल को आगे बढ़ाया जिसके परिणामस्वरूप आज के उपजाए जाने वाले गेहूँ तक हम पहुँच पाये हैं। गेहूँ के दाने अब बड़े हो गए हैं, उनकी उपज बेहतर होती है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये पौधे कटाई तक पके हुए दानों को जकड़े रहते हैं। गेहूँ, चावल, और मकई जैसी फसलों के वर्षों तक चले चुनिंदा
वास्तविक समय में निगरानी एवं परिवर्तनीय परिस्थितिओं के अनुरूप कार्य का आवंटन करने में सक्षम नवीन एल्गोरिदम, स्वायत्त रोबोट्स के मध्य परस्पर सहयोग में उल्लेखनीय प्रगति लाने वाले हैं।
Mumbai/ मई 3, 2024