कुछ अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के समूह ने हाल ही के एक नए अध्ययन में बिहार में कुष्ठ रोग के निदान के लिए एक सरकारी सहायता प्राप्त कार्यक्रम की कुछ अप्रिय वास्तविकता का खुलासा किया है। साथ ही इस बात का अनुमान लगाया है कि कैसे इस कुष्ठ रोग का सटीक निदान हो सके। ये वैज्ञानिक डेमियन फाउंडेशन इंडिया ट्रस्ट, डेमियन फाउंडेशन, बेल्जियम, जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पुदुचेरी, इंटरनेशनल यूनियन फॉर ट्यूबरकुलोसिस एंड लंग डिजीज, फ्रांस औ
Deep-dive
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ताओं ने कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं में औषधि पहुंचाने के लिए प्रोटीन आधारित वाहक की संरचना की है।
क्या आप जानते हैं कि पोकेमॉन फ्रैंचाइज़ी का प्रसिद्ध चरित्र, पिकाचु नामक एक ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाले छोटे जानवर से प्रेरित था?
एशिया, युरोप, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के शोधकर्ताओं की एक बहु-राष्ट्रीय टीम ने 39 देशों के लगभग 17 हज़ार लोगों का सर्वेक्षण किया, यह जानने के लिए कि समाजों के बीच पारस्परिक सम्बंध भिन्न क्यों हैं?
भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोधकर्ताओं ने पूर्वी हिमालय की 3,630 मीटर ऊँचाई की पहाड़ियों में इन शाही बाघों के होने के साक्ष्य का पहला फोटो प्रस्तुत किया था।
जॉन्स हॉपकिंस स्कूल ऑफ मेडिसिन और बायरामजी जीजीभोय सरकारी मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया कि घरेलू वायु प्रदूषण क्षय रोग को कैसे प्रभावित कर सकता है।
लगभग एक मीटर लंबा और १८ किलोग्राम तक वजन वाला, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पृथ्वी पर सबसे भारी उड़ने वाले पक्षियों में से एक है। पिछले ५० वर्षों में उनकी संख्या में लगभग ९०% की गिरावट आई है, और इन करिश्माई पक्षियों का भविष्य विलुप्ति की ओर बढ़ रहा है। वे अब अपने अस्तित्व के लिए समय के खिलाफ एक कड़ी दौड़ में हैं और अगर ये हालात तेजी से नहीं बदलते हैं, तो वे स्वतंत्र भारत में विलुप्त होने वाली पहली प्रजाति हो सकते हैं।
कैंसर, बीमारियों का एक समूह है जिसमें कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि होती है और यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकती है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि एक कैंसरग्रस्त ऊतक के अंदर सभी कोशिकाएँ समान नहीं होती हैं?
शाकाहारी कीटों में पौधों के समुदायों की संरचना और कार्य को प्रभावित करने और आकार देने की क्षमता होती है। कीटों की कुछ प्रजातियाँ अपने जीवन चक्र का कुछ हिस्सा या पूरा जीवन कुछ विशिष्ट पौधों पर ही गुज़ारती हैं। चूँकि उन्होंने लाखों वर्षों से पौधे के साथ सह-सम्बंध विकसित कर लिया होता है इसलिए जिन पौधों का वे सेवन करते हैं उनकी पत्तियों की लंबाई और आकार के विकास पर उनका असर पाया जाता है। इन दोनों के बीच के सम्बंधों को समझने से इस तरह के सवाल कि क्यों पत्तियों की लंबाई और आकार में इतनी विविधता होती है, का जवाब मिल सकता है। एम.ई.एस.
देश में हो रहा मूलभूत शोधकार्य, पुनरुपयोगी एवं आवाज़ से भी कहीं ज्यादा तेज़ चलने वाले वाहन के निर्माण के हमारे सपने को साकार करने में मदद कर सकता है।