क्षयरोग के जीवाणु प्रसुप्त अवस्था में अपने बाह्य आवरण में होने वाले परिवर्तन के कारण प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक्स) से बच कर लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।

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मुंबई

आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने सेवा प्रदाताओं के लिए आपके मोबाइल उपकरणों के लिए सही नेटवर्क को कुशलता से प्रबंधित करने के लिए एल्गोरिदम प्रस्तावित किए।

हमारे जीन हमारी शारीरिक संरचना से लेकर, हमें मिलने वाले रोगों तक हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करते हैं। हमारे जीवन में केवल जीन का ही प्रभाव नहीं होता बल्कि जिस पर्यावरण हम रहते हैं, वो भी हमें प्रभावित करता है। खान-पान, व्यायाम और हमारे निवास स्थान के प्रदूषण का स्तर, सभी हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। अगर बहुत सारे जीन में खराबी आती है तो कैंसर और कोरोनरी धमनी (कोरोनरी आर्टरी) की बीमारी जैसे प्रमुख रोग उत्पन्न होते हैं। लेकिन जीवनशैली और पर्यावरणीय कारक भी इन विकारों और उनकी उग्रता को प्रभावित करने में एक मुख्य भूमिका निभाते हैं। वैज्ञानिक इस तरह

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ग्रैफीन, कार्बन का एक द्वि-आयामी, चद्दर रूपी प्रकार है जिसकी विज्ञान और अभियांत्रिकी में बहुत मॉंग है। वैज्ञानिक न केवल इसके गुणों का पता लगाने और उनका उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि इसका उत्पादन करने के लिए कुशल और किफ़ायती तरीकों की भी तलाश कर रहे हैं। हाल ही के एक अध्ययन में, भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी बॉम्बे) के प्राध्यापक राजीव दुसाने और डॉ शिल्पा रामकृष्ण ने परंपरागत तरीकों की तुलना में अपेक्षाकृत कम तापमान पर हाइड्रोजन परमाणु की

शोधकर्ता बचाव कार्यों में मदद के लिए उपग्रह छवियों की मदद से, तेज़ी से खोज को सक्षम करने के लिए एक प्रणाली का प्रस्ताव देते हैं।

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्ता, एनीलिंग के माध्यम से टाइटेनियम की मशीनिंग को आसान करने के तरीकों पर काम कर रहे हैं

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आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं द्वारा निम्न-आय वर्ग के रहवासियों पर खराब रहवासों से होने वाले प्रभाव का अध्ययन 

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जिला स्तरीय अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की बारिश में होने वाले बदलाव मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। 

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ताँबा (कॉपर) मानव में तंत्रिका और प्रतिरक्षा प्रणाली के सुचारू कामकाज के लिए एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है। यह पौधों के विकास और प्रजनन में भी एक महत्त्वपूर्ण एवं नियामक भूमिका निभाता है। शरीर मे ताँबे की कमी रक्त और तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकारों का कारण बनती है जबकि इसकी अतिरिक्त मात्रा जहरीली हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप अल्ज़ाइमर रोग और सूजन संबंधी विकार उत्पन्न हो जाते हैं। हाल ही के एक अध्ययन में बायोसाइंसेज और बायोइंजिनियरिंग विभाग, भारतीय प्रौ

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विकास और योजना अधिकारियों की मदद के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई द्वारा पारिस्थितिक संवेदनशीलता के व्याख्यान के लिए अध्ययन प्रस्ताव।  

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नया साल शुरू तो हो गया लेकीन हम शायद पिछले साल के हंसीं पलों को याद कर रहे हैं। २०१८ की हमारी एक महत्त्वपूर्ण पहल थी प्रादेशिक भाषाओं में विज्ञान प्रसार। इस की वजह से सम्मोहक विज्ञान कहानियाँ भाषा की सीमाएं पर कर दूर दूर तक पहुँची। कन्नड भाषा से शुरुआत करते हुए हमने हिंदी, मराठी और असमिया में अच्छा प्रदर्शन किया। हमें आशा है कि २०१९ में हम और अच्छा प्रदर्शन करें। पेश कर रहे हैं आप के लिए कुछ प्रादेशिक रस

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